""इस्लाम ने औरत को क्या दिया""
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Islam ne Aurat ko kya diya
जिस वक़्त औरत की पैदाइश मनहूस समझी जाती थी, बच्ची को ज़िंदा गाड़ दिया जाता था,विरासत में कोई हक़ नहीं बल्कि औरत को मर्द के मरने पर विरासत में तक़सीम कर दिया जाता था, लिखने पढ़ने का हक़ न था, सती कर दिया जाता था, दासी, अस्वतंत्र, अशुभ उसका दर्जा था, उसको गिरवी रख सकते थे, उसको ढोर की तरह मारा जाता था, उसको जुए में रखते थे, उसको सिर्फ़ भोगने की चीज़ समझी जाती थी....
Islamic girl |
ऐसे समय इस्लाम ने क़ुरआन में औरतों के नाम से पूरी सूरत सूरह निसा: उतार दी, मर्दों के नाम से सूरह रिजाल नहीं उतारी।
इस्लाम ने कहा कि लड़की की पैदाइश नहूसत नहीं, शर्मिंदगी और बोझ नहीं, बल्कि बहुत बड़ी नेअमत, अल्लाह की रहमत और बरकत है।
इसको ज़िंदा दफ़न करना या मां के पेट में मार देना सबसे घिनौना कृत्य है जिसकी सज़ा जहन्नुम है।
जिसकी जितनी ज़्यादा बेटियां वह उतना ही ख़ुशकिस्मत।
औरत को चार जिहत से विरासत में हक़दार बनाया, मां की हैसियत से, बेटी की हैसियत से, बहन की हैसियत से और बीवी की हैसियत से।
औरत के साथ शादी के लिए महर देना फ़र्ज़ किया गया।
उसकी इज़्ज़त और एहतेराम लाज़िम करार दिया गया
मां के क़दमों तले जन्नत रखी गई।
उनकी फ़ितरी कमज़ोरियों के अनदेखा कर उनकी ख़ूबियों को देखने का हुक्म दिया गया।
बीवी के मुंह में लुक़मा रखने को सवाब बताया गया।
बेटियों की अच्छी तालीम और तरबियत देने वाला जन्नत में हुज़ूर ﷺ का साथी है।
लड़कियों की अच्छी तरबियत पर जन्नत की ज़मानत दी गई है।
बच्ची को नमाज़ में अपने कंधों पर सवार कर बता दिया कि नारी कितनी अज़ीम है।
औरत की सारी जिम्मेदारी मर्द पर है और औरत पर किसी क़िस्म की ज़िम्मेदारी का बोझ नहीं
मोमिन मर्दों से कहा गया कि उसको हवस की निगाह से मत देखो, उसको देखते ही अपनी आंखें नीची कर लो।
बेहतरीन इंसान वह है जो औरतों के साथ अच्छे से पेश आता है।
घर के कामों में औरतों का हाथ बटाना रसूलुल्लाह ﷺ की सुन्नत है
तालीम औरत का बुनियादी हक़ है।
उसको मारना और उसके साथ बुरा सुलूक करना जायज़ नहीं।
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इस्लामिक जानकारी के लिए शुक्रिया -----------------------