Surah muzammil in hindi with arabic tranlation
सुरह मुज़म्मिल हिंदी और अरबी के साथ तर्जुमा इन हिंदी || सुरह मुज़म्मिल हिंदी अरबी टेक्स्ट के साथ
इस आर्टिकल में मुकम्मल सुरह मुज़म्मिल अरबी और हिंदी जानेंगे
Surah al-muzammil hindi arabi |
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है
1. या अय्युहल् मुज़्ज़म्मिलु
یٰۤاَیُّهَا الْمُزَّمِّلُۙ(۱) )
ऐ (मेरे) चादर लपेटे रसूल
2. कुमिल् लै-ल इल्ला क़लीला
قُمِ الَّیْلَ اِلَّا قَلِیْلًاۙ(۲)
रात को (नमाज़ के वास्ते) खड़े रहो मगर (पूरी रात नहीं)
3. निस्फ़हू अविन्कुस् मिन्हु क़लीला
نِّصْفَهٗۤ اَوِ انْقُصْ مِنْهُ قَلِیْلًاۙ(۳)
थोड़ी रात या आधी रात या इससे भी कुछ कम कर दो या उससे कुछ बढ़ा दो
4. औ ज़िद् अ़लैहि व रत्तिलिल् कुरआन तरतीला
اَوْ زِدْ عَلَیْهِ وَ رَتِّلِ الْقُرْاٰنَ تَرْتِیْلًاؕ
और क़ुरान को बाक़ायदा ठहर ठहर कर पढ़ा करो
5. इन्ना सनुल्की अ़लैक कौ़लन् सकी़ला
اِنَّا سَنُلْقِیْ عَلَیْكَ قَوْلًا ثَقِیْلًا(۵)
हम अनक़रीब तुम पर एक भारी हुक्म नाज़िल करेंगे इसमें शक़ नहीं कि रात को उठना
6. इन्न- नाशि-अतल्लैलि हि-य अशद्दु वत्अंव् व अक़्वमु की़ला
اِنَّ نَاشِئَةَ الَّیْلِ هِیَ اَشَدُّ وَطْاً وَّ اَقْوَمُ قِیْلًاؕ(۶)
ख़ूब (नफ्स का) पामाल करना और बहुत ठिकाने से ज़िक्र का वक्त है
7. इन्न ल-क फ़िन्नहारि सब्हन् तवीला
اِنَّ لَكَ فِی النَّهَارِ سَبْحًا طَوِیْلًاؕ(۷)
दिन को तो तुम्हारे बहुत बड़े बड़े अशग़ाल हैं
8. वज़्कुरिस्म रब्बि-क व त-बत्तल् इलैहि तब्तीला
وَ اذْكُرِ اسْمَ رَبِّكَ وَ تَبَتَّلْ اِلَیْهِ تَبْتِیْلًاؕ(۸)
तो तुम अपने परवरदिगार के नाम का ज़िक्र करो और सबसे टूट कर उसी के हो रहो
9. रब्बुल् मश्रिकि वल् मग्रिबि ला इला-ह इल्ला हु-व फ़त्तख़िज़हु वकीला
رَبُّ الْمَشْرِقِ وَ الْمَغْرِبِ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ فَاتَّخِذْهُ وَكِیْلًا(۹)
(वही) मशरिक और मग़रिब का मालिक है उसके सिवा कोई माबूद नहीं तो तुम उसी को कारसाज़ बनाओ
10. वसबिर अ़ला मा यकूलू-न वह्जुरहुम् हज्रन् जमीला
وَ اصْبِرْ عَلٰى مَا یَقُوْلُوْنَ وَ اهْجُرْهُمْ هَجْرًا جَمِیْلًا(۱۰)
और जो कुछ लोग बका करते हैं उस पर सब्र करो और उनसे बा उनवाने शाएस्ता अलग थलग रहो
11. व जर्नी वल् मुकज़्ज़इ बी-न उलिन्नअ्मति व मह्हिल्हुम् क़लीला
وَ ذَرْنِیْ وَ الْمُكَذِّبِیْنَ اُولِی النَّعْمَةِ وَ مَهِّلْهُمْ قَلِیْلًا(۱۱)
और मुझे उन झुठलाने वालों से जो दौलतमन्द हैं समझ लेने दो और उनको थोड़ी सी मोहलत दे दो
12. इन्न लदैना अन्कालंव् व जहीमा
اِنَّ لَدَیْنَاۤ اَنْكَالًا وَّ جَحِیْمًاۙ(۱۲)
बेशक हमारे पास बेड़ियाँ (भी) हैं और जलाने वाली आग (भी)
13. व तआ़मन् ज़ा गुस्सतिंव् व अ़ज़ाबन् अलीमा
وَّ طَعَامًا ذَا غُصَّةٍ وَّ عَذَابًا اَلِیْمًاۗ(۱۳)
और गले में फँसने वाला खाना (भी) और दुख देने वाला अज़ाब (भी)
14. यौ-म तर्जुफुल् अर्जु वल् जिबालु व कानतिल् जिबालु कसीबम् महीला
یَوْمَ تَرْجُفُ الْاَرْضُ وَ الْجِبَالُ وَ كَانَتِ الْجِبَالُ كَثِیْبًا مَّهِیْلًا(۱۴)
जिस दिन ज़मीन और पहाड़ लरज़ने लगेंगे और पहाड़ रेत के टीले से भुर भुरे हो जाएँगे
15. इन्ना अरसल्ना इलैकुम् रसूलन् शाहिदन् अ़लैकुम् कमा अरसल्ना इला फिरऔन रसूला
اِنَّاۤ اَرْسَلْنَاۤ اِلَیْكُمْ رَسُوْلًا ﳔ شَاهِدًا عَلَیْكُمْ كَمَاۤ اَرْسَلْنَاۤ اِلٰى فِرْعَوْنَ رَسُوْلًاؕ(۱۵)
(ऐ मक्का वालों) हमने तुम्हारे पास (उसी तरह) एक रसूल (मोहम्मद) को भेजा जो तुम्हारे मामले में गवाही दे जिस तरह फिरऔन के पास एक रसूल (मूसा) को भेजा था
16. फ़-अ़सा फ़िरऔ़नुर-रसू-ल फ़ अख़ज्नाहु अख़्ज़ंव् वबीला
فَعَصٰى فِرْعَوْنُ الرَّسُوْلَ فَاَخَذْنٰهُ اَخْذًا وَّبِیْلًا(۱۶)
तो फिरऔन ने उस रसूल की नाफ़रमानी की तो हमने भी (उसकी सज़ा में) उसको बहुत सख्त पकड़ा
17. फ़कै-फ़ तत्तकू-न इन् कफ़र-तुम् यौमंय्यज् अ़लुल् विल्दा-न शीबा
فَكَیْفَ تَتَّقُوْنَ اِنْ كَفَرْتُمْ یَوْمًا یَّجْعَلُ الْوِلْدَانَ شِیْبَا
तो अगर तुम भी न मानोगे तो उस दिन (के अज़ाब) से क्यों कर बचोगे जो बच्चों को बूढ़ा बना देगा
18. अस्समा-उ मुन्फ़तिरुम् बिही का-न वअ्दुहू मफ़अूला
17)السَّمَآءُ مُنْفَطِرٌۢ بِهٖؕ-كَانَ وَعْدُهٗ مَفْعُوْلًا(۱۸)
जिस दिन आसमान फट पड़ेगा (ये) उसका वायदा पूरा होकर रहेगा
19. इन्न हाज़िही तज्कि-रतुन् फ़-मन् शाअत्त-ख़-ज़ इला रब्बिही सबीला
اِنَّ هٰذِهٖ تَذْكِرَةٌۚ-فَمَنْ شَآءَ اتَّخَذَ اِلٰى رَبِّهٖ سَبِیْلًا۠(۱۹)
बेशक ये नसीहत है तो जो शख़्श चाहे अपने परवरदिगार की राह एख्तेयार करे
20. इन्न रब्ब-क यअ्लमु अन्न-क तकूमु अद्ना मिन् सुलु-सयिल्लैलि व निस्फ़हू व सुलु-सहू व ताइ फ़तुम् मिनल्लज़ी-न म-अ़-क वल्लाहु युक़द्दिरुल्लै-ल वन्नहा-र अ़लि-म अल्लन् तुह्सूहु फ़ता-ब अ़लैकुम् फ़क़रऊ मा त-यस्स-र मिनल् कुरआनि अ़लि-म अन् स-यकूनु मिन्कुम् मरज़ा व आख़रू-न यज्रिबू-न फिल्अर्ज़ि यब्तगू-न मिन् फ़ज़्लिल्लाहि व आखरू-न युक़ातिलू-न फ़ी सबीलिल्लाहि फ़क़्रऊ मा त-यस्स-र मिन्हु व अक़ीमुस्सला-त व आतुज्ज़का-त व अक्रिजुल्ला-ह क़रज़न् ह-सनन् व मा तुक़द्दिमु लि-अन्फुसिकुम् मिन् खै़रिन् तजिदूहु अिन्दल्लाहि हु-व खैरंव् व अअ्ज़-म अज्रन् वस्तग्फिरुल्ला-ह इन्नल्ला-ह ग़फूरुर रहीम
اِنَّ رَبَّكَ یَعْلَمُ اَنَّكَ تَقُوْمُ اَدْنٰى مِنْ ثُلُثَیِ الَّیْلِ وَ نِصْفَهٗ وَ ثُلُثَهٗ وَ طَآىٕفَةٌ مِّنَ الَّذِیْنَ مَعَكَؕ-وَ اللّٰهُ یُقَدِّرُ الَّیْلَ وَ النَّهَارَؕ-عَلِمَ اَنْ لَّنْ تُحْصُوْهُ فَتَابَ عَلَیْكُمْ فَاقْرَءُوْا مَا تَیَسَّرَ مِنَ الْقُرْاٰنِؕ-عَلِمَ اَنْ سَیَكُوْنُ مِنْكُمْ مَّرْضٰىۙ-وَ اٰخَرُوْنَ یَضْرِبُوْنَ فِی الْاَرْضِ یَبْتَغُوْنَ مِنْ فَضْلِ اللّٰهِۙ-وَ اٰخَرُوْنَ یُقَاتِلُوْنَ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ ﳲ فَاقْرَءُوْا مَا تَیَسَّرَ مِنْهُۙ-وَ اَقِیْمُوا الصَّلٰوةَ وَ اٰتُوا الزَّكٰوةَ وَ اَقْرِضُوا اللّٰهَ قَرْضًا حَسَنًاؕ-وَ مَا تُقَدِّمُوْا لِاَنْفُسِكُمْ مِّنْ خَیْرٍ تَجِدُوْهُ عِنْدَ اللّٰهِ هُوَ خَیْرًا وَّ اَعْظَمَ اَجْرًاؕ-وَ اسْتَغْفِرُوا اللّٰهَؕ-اِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ۠(۲۰)
(ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार चाहता है कि तुम और तुम्हारे चन्द साथ के लोग (कभी) दो तिहाई रात के करीब और (कभी) आधी रात और (कभी) तिहाई रात (नमाज़ में) खड़े रहते हो और ख़ुदा ही रात और दिन का अच्छी तरह अन्दाज़ा कर सकता है उसे मालूम है कि तुम लोग उस पर पूरी तरह से हावी नहीं हो सकते तो उसने तुम पर मेहरबानी की तो जितना आसानी से हो सके उतना (नमाज़ में) क़ुरान पढ़ लिया करो
और वह जानता है कि अनक़रीब तुममें से बाज़ बीमार हो जाएँगे और बाज़ ख़ुदा के फ़ज़ल की तलाश में रूए ज़मीन पर सफर एख्तेयार करेंगे और कुछ लोग ख़ुदा की राह में जेहाद करेंगे तो जितना तुम आसानी से हो सके पढ़ लिया करो और नमाज़ पाबन्दी से पढ़ो और ज़कात देते रहो और ख़ुदा को कर्ज़े हसना दो और जो नेक अमल अपने वास्ते (ख़ुदा के सामने) पेश करोगे उसको ख़ुदा के हाँ बेहतर और सिले में बुर्ज़ुग तर पाओगे और ख़ुदा से मग़फेरत की दुआ माँगो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है
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