1-6 Tak ka Kalama hindi matlab ke sath | 6 छह कलमा और उनका हिंदी

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1-6 Tak ka Kalama hindi matlab ke sath |  6 छह कलमा और उनका हिंदी 


कलमा (Kalma) एक इस्लामी धर्म का महत्वपूर्ण तत्व है जो मुस्लिम समुदाय के लिए आधारभूत माना जाता है। इसमें छह छोटे-छोटे अल्फ़ाज़ हैं जो विश्वास के मायने और तौहीद (एकदेवतावाद) का अभिवादन करते हैं।

यह कलमा इस्लामी विश्वास का मूल आधार है और हर मुस्लिम को अपने ईमान के साथ स्वीकार करना चाहिए। इसके माध्यम से मुस्लिम समुदाय के सदस्य अपने धर्म के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को पालन करते हैं और इस्लाम के मूल अभिवादन को स्वीकार करते हैं। यह कलमा उनकी शक्ति और सजगता को बढ़ाता है और उन्हें एकजुट होकर समाज में एक भयभीत कर्मठ समुदाय का हिस्सा बनाता है।


१. तौहीद कलमा "First Kalama"

first Kalama 

"ला इलाहा इल्लल्लाहु मुहम्मदुर रसूलुल्लाह।" 

यह कहता है, "अल्लाह के सिवाय कोई दूसरा ईश्वर नहीं है, और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अल्लाह के रसूल हैं।"


1."ला इलाहा इल्लल्लाहु मुहम्मदुर रसूलुल्लाह" का ताफसीर इस प्रकार है:

इस कलमे में दो अहम तथ्य हैं - पहला, जिसका मतलब है, "इलाह के सिवाय कोई माबूद नहीं है," यानी केवल एक ईश्वर है जो पूजनीय है। और दूसरा, "मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अल्लाह के रसूल हैं," यानी वे एक मुहम्मद नामक व्यक्ति बनकर अल्लाह के मार्गदर्शक हैं और उनके द्वारा दिए गए आदेश और सिखाए गए सिद्धांतों को पालन करना चाहिए।

यह कलमा इस्लामी धर्म का मूल आधार है और मुस्लिम विश्वासियों के लिए यह अत्यंत मान्य और पवित्र माना जाता है। इसके माध्यम से मुस्लिम विश्वासी अपने ईमान को प्रकट करते हैं और अपने सिर से पांव तक समर्पित होकर अल्लाह की आज्ञाओं का पालन करते हैं। इसके जरिए, उन्हें अपने धर्म के संदेश को अनुसरण करने और धर्मीक जीवन जीने के लिए प्रेरित किया जाता है।


२. Second Kalama  "शहादत कलमा"

Second Kalama

तर्जुमा:


"मैं साक्षी हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई दूसरा ईश्वर नहीं है, वह एकमात्र है और उसका कोई सहायक नहीं है। और मैं साक्षी हूँ कि मुहम्मद उसका बंदा और उसके रसूल हैं।"




तफसीर:


यह कलमा इस्लामी धर्म का मूल आधार है और मुस्लिम विश्वासियों के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके माध्यम से वे अपने ईमान को प्रकट करते हैं और अल्लाह की एकाधिकारता और उसके एकल विश्वास का पालन करते हैं। इसके द्वारा वे स्पष्ट रूप से संबोधित करते हैं कि केवल एक ईश्वर हैं जिसे पूजनीय माना जाना चाहिए और कोई भी साथी नहीं है।




साथ ही, इस कलमे में वे गवाही देते हैं कि पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अल्लाह के बंदे और उनके रसूल हैं। वे उनकी अधीनता में रहकर उनके सिद्धांतों का पालन करते हैं और उनके द्वारा दिए गए आदेशों का अनुसरण करते हैं।




इस तरह, यह कलमा एक संक्षेप्त रूप से इस्लामी विश्वास को संबोधित करता है और मुस्लिम समुदाय के सभी सदस्यों के लिए एक बिंदु है जिसे वे अपने दिल से नामुराद अपनाते हैं।


३. Third Kalama  "3 कलमा "

Third Kalama

हिंदी अनुवाद: मैं अपने रब्ब से हर उस पाप की माफ़ी माँगता हूँ जो मैंने जानबूझकर या गलती से किया है, और मैं उस पर तब्दीली करने की क़सम खाता हूँ, फिर मैं अपने रब्ब से हर उस पाप की माफ़ी माँगता हूँ जो मैंने जानबूझकर या गलती से किया है।


3.तफसीर: यह कलमा अस्तग़फ़र (क्षमा मांगना) को संबोधित करता है। इसमें प्रकट किया गया है कि मैं अपने रब्ब से हर वह पाप माफ़ी मांगता हूँ जो मैंने जानबूझकर या गलती से किया है, और मैं उसे तब्दीली करने के लिए प्रतिज्ञा करता हूँ, फिर मैं अपने रब्ब से हर वह पाप माफ़ी मांगता हूँ जो मैंने जानबूझकर या गलती से किया है।

 4.Forth Kalama  "कलमा चार" 

Forth Kalama

"ला इलाहा इल्लल्लाहु वहदहू ला शरीक लहू, लहू वहला हु वला हुवला हुवला, ज़ुल जलालि वल इकराम, बियादि हिल खैर, वहुवा आला कुल्लि शैयइन कदीर।"

तर्जुमा:

"वह एकमात्र ईश्वर है, कोई और उसके साथी नहीं है, उसका कोई साथी नहीं है। वह अद्भुत और महान है, उसके द्वारा सभी भलाईयां होती हैं और वह सभी चीजों पर काबू रखता है। वह हर चीज के नियंत्रक है और सब पर शक्तिशाली है।"

तफसीर:

यह कलमा इस्लामी धर्म का मूल आधार है और इसे "तौहीद" या एकदेवतावाद का नाम दिया जाता है। यह कलमा इस्लामी ईमान की बुनियाद बनता है और मुस्लिम विश्वासियों के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके माध्यम से वे अपने ईमान को प्रकट करते हैं और अल्लाह की एकता, अद्वितीयता, और अदल व न्याय के विशेष गुणों का पालन करते हैं।

इस तरह, यह कलमा मुस्लिम समुदाय के सभी सदस्यों के लिए एक बिंदु है जिसे वे अपने दिल से नामुराद अपनाते हैं और अपने धर्म के सिद्धांतों के अनुसरण करते हैं।

5. Fifth Kalama "कलमा पाँच"

Fifth Kalama

"मैं अल्लाह से माफ़ी माँगता हूँ अपने हर गुनाह से, चाहे वह मैंने जानबूझकर किया हो या भूल से। वह अल्लाह ही सब छिपे हुए और जाहिर गुनाहों को जानता है, और उन्हें माफ़ करता है। उसकी शक्ति और महानता को मैं स्वीकार करता हूँ।"

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तफसीर:

यह दुआ एक मुस्लिम की तोबा और माफ़ी मांगने का अभिवादन है। इसमें उसने अपने रब्ब, अल्लाह से बारीकी और राहत की तलाश की है। उसने अपने किए गए सभी गुनाहों की माफ़ी माँगी है, चाहे वे उसने जानबूझकर किये हों या भूल से। उसने अपने जानने वाले और नाजाने वाले सभी गुनाहों की तौबा की है। वह जानता है कि उसने किस किस तरह के गुनाह किए हैं और उसके लिए उसे अल्लाह से माफ़ी माँगने का इरादा है। इस दुआ के माध्यम से उसने अल्लाह के गुणों को याद करते हुए अपने अपराधों की माफ़ी माँगी है और उसे उस पर यकीन है कि अल्लाह उसकी तौबा को स्वीकार करेंगे और उसके गुनाहों को माफ़ करेंगे। इस दुआ में उसने अपने बनने वाले और आने वाले सभी अच्छे कामों की तरफ अपना दृष्टिकोण बढ़ाया है और अल्लाह की बड़ी शक्ति और महानता को स्वीकार किया है।

6. Sixth Kalama

 

Sixth Kalama

"अल्लाह हुम्मा इन्नी अउजुबिका मिन अन उश्रिक बिका शैयान व अना आलमु बिही व अस्तग़्फिरुका लिमा ला आलमु बिही तुब्तु अन्हु व तबर्राउतु मिनल कुफर वश्शिर्क ववक़्द़िब वघीबति वबिद़्आति वन्नमीमति वफ़वाहिशि वबुह्तानि वलमासिय कुल्लिहा वअस्लम्तु वअकूलु ला इलाहा इल्लल्लाहु मुहम्मदुर रसूलुल्लाह"


तर्जुमा:

"हे अल्लाह, मैं पनाह माँगता हूँ तुझसे  कि मैं तुझे कुछ भी शरीक बनाऊँ, जिसमें मुझे ज्ञान हो या न हो। और मैं उस गुनाह से तौबा करता हूँ जिसके बारे में मुझे ज्ञान न हो, और मैं दुर्भाग्यवश कुफ़्र, शिर्क, झूठ, छिपी हुई बातें, नई बातें, गाली देना, नीति के विरुद्ध संकल्प, ग़ीबत करना, अनैतिकता और बड़े पापों से तबर्रा करता हूँ। और मैं सिर्फ तुझे ही मानता हूँ और कहता हूँ - ला इलाहा इल्लल्लाहु मुहम्मदुर रसूलुल्लाह।"


तफसीर:

यह दुआ एक मुस्लिम की तौबा, माफ़ी माँगने और ईमान की पुष्टि का अभिवादन है। इसमें वह अल्लाह से अपने गुनाहों के अपनी जाने-अनजाने के कारण तौबा करता है और उन्हें अल्लाह से माफ़ी माँगता है। इस दुआ के माध्यम से वह अपने सभी गुनाहों के प्रति खुद को पाखंडीता और शिर्क से दूर करता है। वह अपने धर्म के सिद्धांतों का पालन करने और एकता में विश्वास करने का इरादा करता है।

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