Quran Surah Al-Fatiha 1:0
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत महरबान रहमत वाला।
surah fatiha ayat no.1 ka translation aur tafseer
अल्लामा अहमद सावी रहमतुल्लाह ताआला अलैह फ़रमाते हैं: क़ुरआन मजीद की इब्तिदा ‘‘बिस्मिल्लाह‘‘ से इस लिए की गई ताक़ि अल्लाह ताआला के बंदे इसकी पैरवी करते हुए हर अच्छे काम की इब्तिदा
‘‘बिस्मिल्लाह‘‘ से करें। (सावी, अलफ़ातिहा, 1 / 15) और हदीस पाक में भी (अच्छे और) अहम काम की इब्तिदा ‘‘बिस्मिल्लाह‘‘ से करने की तर्जीब दी गई है, चुनांचे
हज़रत अबु हुरैरह ऱदियअल्लाह ताआला अन्हु से रवायत है, ह़ुज़ूर पर नूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: ‘‘जिस अहम काम की इब्तिदा ‘‘बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम‘‘ से नहीं की गई तो वह अधूरा रह
जाता है। (कंज़ अल अमाल, किताब अल अज्ज़कार, अलबाब अल साबिअ फी तिलावत़ अल कुरआन वफ़ज़ाइलह, अलफ़स्ल अलथानी।।।अलख़, 1 / 277, अलज़ुअअल।अव्वल, अलह़दीस:2488)
लेहज़ा तमाम मुसलमानों को चाहिए कि वह हरनिक और जायज़ काम की इब्तिदा ‘‘बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम‘‘ से करें, इसकी बहुत बरकत है।[1]
surah fatiha
{अर-रह्मानिर रहीम: जो बहुत महरबान रहमत वाला है।} इमाम फख्रुद्दीन राज़ी रहमतुल्लाह ताआला अलैह फरमाते हैं: अल्लाह ताआला ने अपनी ज़ात को "Surah Fatiha in Hindi" रहमान और रहीम फरमाया तो यह उस की शान से बेहद दूर है कि वह रहम न फरमाए। मरवी है कि एक सवाल करने वाले ने बड़े दरवाजे के पास खड़े होकर कुछ मांगा तो
उसे थोड़ा सा दे दिया गया, दूसरे दिन वह एक कुल्हाड़ा लेकर आया और दरवाजे को तोड़ना शुरू कर दिया। इस से कहा गया कि तू ऐसा क्यों कर रहा है? उसने जवाब दिया: तू दरवाजे को अपनी आता के लायक कर या अपनी आता को दरवाजे के लायक बना। ऐ हमारे अल्लाह! रहमत के समंदरों को तेरी रहमत से वह निस्बत है जो एक छोटे से ज़र्रे को तेरे अर्श से निस्बत है और तूने अपनी किताब की इब्तिदा में अपने बंदों पर अपनी रहमत की सिफ़त बयान की इस लिए हमें अपनी रहमत और फ़ज़ल से महरूम न रखना। (तफ़सीर कबीर, अलबाब अलहादी उश्रा फी बदी अल्नुकतिल मस्तखरजा... अलख़, 1/153)
बिस्मिल्लाह‘‘ से मुतालिक़ चंद शरीआ मसाइल:
उलमा कराम ने ‘‘बिस्मिल्लाह‘‘ से मुतालिक़ बहुत से शरीआ मसाइल बयान किए हैं, उनमें से चंद दर्ज ज़िल हैं:
(1)… जो ‘‘बिस्मिल्लाह‘‘ हर सूरत के शुरू में लिखी हुई है, यह पूरी आयत है और जो ‘‘सूरह नमल‘‘ की आयत नंबर 30 में है वह उस आयत का एक हिस्सा है।
(2)… ‘‘बिस्मिल्लाह‘‘ हर सूरत के शुरू की आयत नहीं है बल्कि पूरे कुरान की एक आयत है जिसे हर सूरत के शुरू में लिख दिया गया ताकि दो सूरतों के दरमियान फ़ासला हो जाए, इसी लिए सूरत के ऊपर उम्तियाज़ी
शान में ‘‘बिस्मिल्लाह‘‘ लिखी जाती है आयातों की तरह मिला कर नहीं लिखते और इमाम जह्री नमाज़ों में ‘‘बिस्मिल्लाह‘‘ आवाज़ से नहीं पढ़ता, नीज़ हदरत जबरील अलैहिस्सलाम जो पहली वही लाये उसमें ‘‘बिस्मिल्लाह‘‘ नहीं थी।
(3)…तरावीह पढ़ानेवाले को चाहिए कि वह किसी एक सूरत के शुरू में ‘‘बिस्मिल्लाह‘‘ आवाज़ से पढ़े ताकि एक आयत रह न जाए।
(4)… तिलावत शुरू करने से पहले ‘‘आउज़ु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रज़ीम‘‘ पढ़ना सुन्नत है, लेकिन अगर शागिर्द उस्ताद से कुरान मजीद पढ़ रहा हो तो उसके लिए सुन्नत नहीं है।
(5)…सूरत की इब्तिदा में ‘‘बिस्मिल्लाह‘‘ पढ़ना सुन्नत है वरना मस्तहब है।
(6)…अगर ‘‘सूरह तौबा‘‘ से तिलावत शुरू की जाए तो ‘‘आउज़ु बिल्लाह‘‘ और ‘‘बिस्मिल्लाह‘‘ दोनों को पढ़ा जाए और अगर तिलावत के दौरान सूरह तौबा आ जाए तो ‘‘बिस्मिल्लाह‘‘ पढ़ने की हज़त नहीं।
[1] ‘‘बिस्मिल्लाह‘‘ शरीफ के अधिक फ़ज़ाइल जानने के लिए अमीर अहले सुन्नत हज़रत आलामा मौलाना मोहम्मद इल्यास आटार क़ादरी, ऱज़वी दामत बरकातुहुमुल आलिया की तालीफ, "फ़य्यदाने बिस्मिल्लाह" (मुदाब्बिरह
मकतबतुल मदीना), का मुताला करें।
Quran Surah Al-Fatiha 1:1
اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِیْنَ
सब खूबियाँ अल्लाह को जो मालिक सारे जहान वालों का।
अल्हम्दुलिल्लाह: सब तारीफ़ें अल्लाह के लिए हैं।} यानी हर तरह की हम्द और तारीफ का मुस्तहिक अल्लाह तआला है क्योंकि अल्लाह तआला कमाल की तमाम सिफात का जामिय है। हम्द और शुक्र की तारीफ: हम्द का मतलब है किसी की ऐच्छिक खूबियों की बुनियाद पर उसकी तारीफ़ करना और शुक्र की तारीफ़ यह है कि किसी के इहसान के मुकाबले में ज़बान, दिल या अज़ाइ़ से उसकी ताज़ीम करना। और हम चूंकि अल्लाह अज़्ज़वजल की हम्द आम तौर पर उसके इहसानात के पेश नज़र करते हैं इसलिए हमारी यह हम्द ‘‘शुक्र‘‘ भी होती है। अल्लाह तआला की हम्द और सिफात करने के फ़ज़ाइल: अहादीस में अल्लाह तआला की हम्द और सिफात करने के बहुत फ़ज़ाइल बयान किए गए हैं, इनमें से 3 फ़ज़ाइल दर्ज ज़ील हैं: (1)… हज़रत अंस बिन मालिक ऱदिय़ अल्लाहु तआला अन्हु से रवायत है, नबीअकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया: ‘’अल्लाह तआला बंदे की उस बात से खुश होता है कि वह कुछ खाए तो अल्लाह तआला की हम्द करे और कुछ पिए तो अल्लाह तआला की हम्द करे। (मुस्लिम، किताबुद जिक्र वदुआ، बाब इस्तहब्बे हम्दिल्लाह।।। अलख, पृष्ठ १४६३, अलहदीस: ८९(२७३४)) (2)… हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह ऱदिय़ अल्लाहु तआला अन्हु से रवायत है, हज़रत पर नूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया: ‘’सबसे अफ़ज़ल ज़िक्र ‘‘ला इलाहा इल्लाल्लाह‘‘ है और सबसे अफ़ज़ल दुआ ‘‘अल्हम्दुलिल्लाह‘‘ है। (इब्न माजाह, किताबुल अदब, बाब फ़ज़लुल हामिदीन, ४ / २४८, अलहदीस: ३८००) (3)… हज़रत अंस बिन मालिक ऱदिय़ अल्लाहु तआला अन्हु से रवायत है, हज़रत इकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वआलिहि वसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया ‘’जब अल्लाह तआला अपने बंदे पर कोई ऩेमत ऩाज़िल फ़रमाता है और वह (ऩेमत मिलने पर) ‘‘अल्हम्दुलिल्लाह‘‘ कहता है तो यह हम्द अल्लाह तआला के ऩज़दीक उस दी गई ऩेमत से ज़ियादा अफ़ज़ल है। (इब्न माजाह, किताबुल अदब, बाब फ़ज़लुल हामिदीन, ४ / २५०, अलहदीस: ३८०५) हम्द से मुतालिक़ शर्आई हुक्म: खुतबे में हम्द ‘‘वाजिब‘‘, खाने के बाद ‘‘मस्तहब‘‘, छींक आने के बाद ‘‘सुन्नत‘‘, हराम काम के बाद ‘‘हराम‘‘ और कुछ सूरतों में ‘‘कुफ़्र‘‘ है। {लिल्लाह: अल्लाह के लिए।} ‘‘अल्लाह‘‘ वह जात इ अअला नाम है जो तमाम कमाल वाली सिफातों की जामिय है और बाज़ मुफस्सिरीन ने इस लफ़्ज़ के मानी भी बयान की हैं जैसे कि इस का एक मानी है: ‘‘इबादत का मुस्तहक‘‘ दूसरा मानी है: ‘‘वह जात जिस की मारिफ़त में आक़लें हैरान हैं‘‘ तीसरा मानी है: ‘‘वह जात जिस की बारगाह में सुकून हासिल होता है‘‘ और चौथा मानी है: ‘‘वह जात कि मुसीबत के वक़्त जिस की पनाह तलाश की जाए।‘‘(बैज़ावी، अलफातिहा، १ / ३२) {रब्बिल आलमीन: जो सारे जहान वालों का मालिक है।} लफ़्ज़ ‘‘रब‘‘ के कई मानी हैं: जैसे कि सय्यिद, मालिक, माबूद, साबित, मुसलह और बतद्रिज मर्तबा कमाल तक पहुंचाने वाला। और अल्लाह तआला के इलावा हर मौजूद चीज़ को आलाम कहते हैं और उस में तमाम मखलूकात दाखिल हैं।(सावी، अलफातिहा، तह्तुल आयत: १, १ / १६, खाज़िन، अलफातिहा، तह्तुल आयत: १, १ / १७, मुल्तक्ता)।"
Quran Surah Al-Fatiha 1:2
الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
बहुत महरबान और रहमान।
अल-रह्मान: बहुत महरबान।} रहमान और रहीम अल्लाह ताला के दो सिफाती नाम हैं, रहमान का मतलब है: नेकियों की बहुत बड़ी रहमत देने वाला वह ज़ात जो बहुत ज़्यादा रहमत करें, और रहीम का मतलब है: बहुत ज़्यादा रहमत करने वाला।
याद रहे कि हक़ीक़त में नेकियाँ देने वाली ज़ात अल्लाह ताला की है कि वही तनहा ज़ात है जो अपनी रहमत का बदला तलब नहीं करती, हर छोटी, बड़ी, ज़ाहिरी, बातिनी, ज़िमानी, रूहानी, दुनियावी और आखिरी नेकी अल्लाह ताला ही देता है और दुनिया में जिस शख़्स तक जो नेकी पहुँचती है वह अल्लाह ताला की रहमत से है क्यूंकि किसी के दिल में रहम का जज़्बा पैदा करना, रहम करने पर क़ुदरत देना, नेकी को वुजूद में लाना, दूसरे का इस नेकी से फ़ायदा उठाना और फ़ायदा उठाने के लिए अवयवों की सलामती देना, ये सब अल्लाह ताला की तरफ़ से है।
अल्लाह ताला की विस्तार रहमत देख कर गुनाहों पर बेबाक न होना चाहिए:
अबु अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन अहमद ख़रटबी रहमतुल्लाहि ताला अलैह फ़रमाते हैं: अल्लाह ताला ने "रब्बिल आलमीन" के बाद अपने दो अद्वितीय अवयव रहमान और रहीम बयान किए, इसका मक़सद ये है कि जब अल्लाह ताला ने फ़रमाया कि वह "रब्बिल आलमीन" है, तो उससे (सुनने और पढ़ने वाले के दिल में अल्लाह ताला की अद्बुतता की वजह से उसका) डर पैदा हुआ, तो उस के साथ ही अल्लाह ताला के दो अवयव रहमान और रहीम जिक्र किये गए जिनके जरिए (अल्लाह ताला की आज़ादी के) तरीक़े और तरीक़े को समझाया गया कि बन्दा अल्लाह ताला की आज़ादी करने की ओर अच्छी तरह राग़ीब हो और उसकी नाफ़रमानी करने से रोकें।
कुरान मजीद में और मुकामात पर अल्लाह ताला की रहमत और उसके अज़ाब दोनों को वाजिब तौर पर एक साथ ज़िक्र किया गया है, जैसे
अल्लाह ताला इर्षाद फ़रमाता है:
''नब्बि इबादी अन्नि अनाल गफूरुर रहीम (४९) व अन्ना आज़ाबी हुवल आज़ाबुल आलिम'' ’’ نَبِّئْ عِبَادِیْۤ اَنِّیْۤ اَنَا الْغَفُوْرُ الرَّحِیْمُۙ(۴۹) وَ اَنَّ عَذَابِیْ هُوَ الْعَذَابُ الْاَلِیْمُ‘‘
(हिज्र: ४९, ५०)
तर्जुमा: "मेरे बंदों को यह सुना दे कि बेशक मैं बख़्शने वाला, बहुत रहमत वाला हूँ। और बेशक मेरा यही अज़ाब है कि यह बड़ा दुखद अज़ाब है।''
और इर्षाद फरमाया: ''غَافِرِ الذَّنْۢبِ وَ قَابِلِ التَّوْبِ شَدِیْدِ الْعِقَابِۙ-ذِی الطَّوْلِؕ- لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَؕ-اِلَیْهِ الْمَصِیْرُ‘‘ (मोमिन: ३)
तर्जुमा: "गुनाह माफ करने और तौबा कबूल करने वाला, सख़्त आज़ाब देने वाला, बड़े इनाम (देने) वाला है। उसके सिवा कोई माबूद नहीं, वापिस उसी की तरफ़ है।''
उरफ़ अबु हुरैरा ऱदिअल्लाहु ताला अन्हु से रवायत है, रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु ताला अलैहि वसल्लम ने इर्षाद फरमाया: ''अगर मोमिन जान लेता कि अल्लाह के पास कितना अज़ाब है तो कोई भी उसकी ज़न्नत की उम्मीद नहीं रखता और अगर काफ़िर जान लेता कि अल्लाह के पास कितनी रहमत है तो कोई भी उसकी ज़न्नत से ना उम्मीद होता।'' (मुस्लिम, किताब अलतौबा, बाब फी सा'ति रहमति अल्लाह।।। अलख़्, पृष्ठ १४७३, अलहदीस: २३ (२७५५)) इसलिए हर मुसलमान को चाहिए कि वह उम्मीद और ख़ौफ़ के दरमियान रहे और अल्लाह ताला की रहमत की विस्तारता देख कर गुनाहों पर बेबाक न हो और न ही अल्लाह ताला के अज़ाब की शिद्दत देख कर उसकी रहमत से मायूस हो।
किसी को रहमान और रहीम कहने के बारे में शरई हुक़्म:
अल्लाह ताला के सिवा किसी और को रहमान कहना जाइज़ नहीं जबकि रहीम कहा जा सकता है जैसे कुरान मजीद में अल्लाह ताला ने अपने हबीब सल्लल्लाहु ताला अलैहि वसल्लम को भी रहीम फरमाया है, चूनांचा इर्षाद बारी ताला है: لَقَدْ جَآءَكُمْ رَسُوْلٌ مِّنْ اَنْفُسِكُمْ عَزِیْزٌ عَلَیْهِ مَا عَنِتُّمْ حَرِیْصٌ عَلَیْكُمْ بِالْمُؤْمِنِیْنَ رَءُوْفٌ رَّحِیْمٌ‘‘'' (तौबा: १२८)
तर्ज़ुमा: "बेशक तुम्हारे पास तुम में से वह बड़ा रसूल आया है जिस पर तुम्हें उनके प्रति बहुत तमन्ना है, वह मुसलमानों पर बहुत महरबान, रहमत फरमाने वाला है।"
Quran Surah Al-Fatiha 1:3
مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ
रोज़े जज़ा का मालिक।
मालिक योम अद-दीन: जज़ा के दिन का मालिक।}
जज़ा के दिन से मुराद क़यामत का दिन है, जिस दिन नेक आमल करने वाले मुस्लिमानों को सवाब मिलेगा और गुनाहगारों और काफ़िरों को सज़ा मिलेगी। जबकि "मालिक" उसे कहते हैं जो अपनी मल्कियत में मौजूद चीज़ों में जैसे चाहे तसर्रुफ़ करे।
अल्लाह तआला अगरचे दुनिया और आखिरत दोनों का मालिक है, लेकिन यहाँ "क़यामत" के दिन को बतौर ख़ास इस लिए ज़िक्र किया गया ताकि इस दिन की महत्वपूर्णता दिल में बैठे। नीज़ दुनिया के मुकाबले में आखिरत में अल्लाह तआला के मालिक होने का ज़ाहिर ज़ियादा होगा, क्योंकि।"
Quran Surah Al-Fatiha 1:4
إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ
हम तुझे पूजते हैं और तुझसे मदद चाहते हैं।
{इय्याक नाबुदु व इय्याक नस्तईनु: हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझ ही से मदद चाहते हैं।}
इस से पहली आयतों में बयान हुआ है कि हर तरह की हम्द और सिफात का हक़ीक़ी मुस्तहक़ अल्लाह ताला है जो कि सब जहानों का पालने वाला, बहुत मेहरबान और रहम करने वाला है, और इस आयत से बंदों को सिखाया जा रहा है कि अल्लाह ताला की बारगाह में अपनी बंदगी का इज़हार यूं करो कि अरे अल्लाह! आज़्ज़ो वज़्ज़ल, हम सिर्फ़ तेरी ही इबादत करते हैं क्योंकि इबादत का मुस्तहक़ सिर्फ़ तू ही है और तेरे अलावा और कोई इस लायक़ ही नहीं कि उसकी इबादत की जा सके और हक़ीक़ी मदद करने वाला भी तू ही है। तेरी इजाज़त और मर्ज़ी के बग़ैर कोई किसी की किसी क़िसम की ज़ाहिरी, बातिनी, जिस्मानी, रूहानी, छोटी बड़ी कोई मदद नहीं कर सकता।
इबादत और ताज्ज़ीम में फ़र्क़:
इबादत का मफ़हूम बहुत वाज़ह है, समझने के लिए इतना ही काफ़ी है कि किसी को इबादत के लायक़ समझते हुए उसकी किसी क़िसम की ताज्ज़ीम करना 'इबादत' कहलाता है और अगर इबादत के लायक़ नह समझें तो वह महज़ 'ताज्ज़ीम' होगी, जैसे नमाज़ में हाथ बाँध कर खड़ा होना इबादत है लेकिन यही नमाज़ की तरह हाथ बाँध कर खड़ा होना उस्ताद, पीर या माँ बाप के लिए हो तो महज़ ताज्ज़ीम है इबादत नहीं और दोनों में फ़र्क़ वही है जो अभी बयान किया गया है।
आयत 'इय्याक नाबुदु' से मालूम होने वाली अहम बातें:
आयत में जम्म के स़ैग़े हैं जैसे हम तेरी ही इबादत करते हैं इस से मालूम हुआ कि नमाज़ जमात के साथ अदा करनी चाहिए और दूसरों को भी इबादत करने में शरीक करने का फ़ायदा यह है कि गुनाहगारों की इबादतें अल्लाह ताला की बारगाह के महबूब और मक़बूल बंदों की इबादतों के साथ जम्म हो कर क़बूलियत का दर्जा पालिती हैं। नीज़ यह भी मालूम हुआ कि अल्लाह ताला की बारगाह में अपनी हाज़त अर्ज़ करने से पहले अपनी बंदगी का इज़हार करना चाहिए। इमाम अब्दुल्लाह बिन अहमद नस्फ़ी रःमतुल्लाहि ताआला अलैह कहते हैं: इबादत को मदद तालब करने से पहले ज़िक्र किया गया क्योंकि हाज़त तालब करने से पहले अल्लाह ताला की बारगाह में वसीला पेश करना क़बूलियत के ज़ियादा क़रीब है।"
allah اللہ ताला की बरगाह में वसीला पेश करने की बरकत:
हर मुसलमान को चाहिए कि वह अल्लाह ताला की बरगाह में किसी का वसीला पेश करके अपनी हाजतें के लिए दुआ करें, ताकि उस वसीले के सदके दुआ जल्द मंजूर हो जाए और अल्लाह ताला की बरगाह में वसीला पेश करना कुरआन और हदीस से साबित है, इसलिए वसीले के बारे में अल्लाह ताला आगाह करता है: "या अय्युहाल्लजीना आमनू ات्तकुआ अल्लाह व इब्तगू इलैहि अलवसीला" (माइदा: ३५)
तर्जुमा क़ंज़ उल आरफ़ान: ऐ ईमान वालो! अल्लाह से डरो और उसकी तरफ़ वसीला ढूंढो।
और "सुनन इब्ने माजा" में है कि एक अंधे सहाबी बरगाह रिसालत में हाजिर होकर दुआ के तालिब हो तो आप सालल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें इस तरह दुआ माँगने का हुक्म दिया: "अल्लाहुम्म इन्नी असअलुक व अतवज्जहु इलैक बि मुहम्मदिन नबिय्यिल रहमत या मुहम्मद इन्नी क़द तवज्जह्तु बिक इलै रब्बी फी हाजती हाज़िही लितुकद्वा अल्लाहुम फशफ़्फिहु फीया" अय अल्लाह! असअलुक तुझसे और तेरी तरफ मुहम्मदिय्यिल रहमत नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ मतवज्जह होता हूँ, हे मुहम्मद! सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, मैंने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के वसीले से अपने रब्ब की तरफ़ अपनी इस हाजत में तुज्जह की ताकि मेरी हाजत पूरी हो जाए, हे अल्लाह! फिर तूमेरे लिए हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की शफ़ाअत मंजूर कर। (इब्ने माजा, किताबुस सलाः, बाब मा जा फी सलाः अलहाज्जत, २/१५७, हदीस: १३८५)
हदीसे पाक में मुज़क्कर लफ़्ज़ "या मुहम्मद" से मुतालिक़ ज़रूरी वज़ाहट:
आला हज़रत इमाम अहमद रजा खान रहमतुल्लाहि ताला अलैह कहते हैं: "उलमा तस्सरीह फरमाते हैं: हुजूर इकदस साल्लाहु अलैहि व आलेहि व सल्लम को नाम ले कर निंदा करनी हराम है। और (यह बात) वाकई महल इंसाफ है, जिसे इस का मालिक और मौला तबारक व ताला नाम ले कर न पुकारे (तो) ग़ुलाम की क्या मजाल कि (वह) राहे अदब से तज़ावज़ करे, बल्कि इमाम ज़ईनुल्दीन मरागिई व अख़ीरीन मुहख़्यिक़ीन ने फरमाया: अगर ये लफ़्ज़ किसी दुआ में वारिद हो जो ख़ुद नबी साल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तालीम फरमाई (हो) जैसे दुआए "या मुहम्मदु इन्नी तवज्जह्तु बिक इला रब्बी"। हालांकि इस की जगह "या रसूलल्लाह, या नबीय्यल्लाह" (कहना) चाहिए, हालांकि अल्फ़ाज़े दुआ में हत्तय उस्आ' तग़यीर नहीं की जाती। ये मस़ल्ला मुहिम्माह (यानी अहम मसला) है जिस से अक्सर आहल ज़माना ग़ाफ़िल है वाजिबुल्हफ़्ज़ है। (फ़तवा रज़वीय्या, ३०/१५७-१५८)
"{وَ اِیَّاکَ نَسْتَعِیْنُ: और तुझ ही से मदद चाहते हैं।} इस आयत में बयान किया गया कि मदद तालब करना खा हवास्सुदवां या बिग़ैर हवास्सुदवां हर तरह से अल्लाह ताला के साथ खास है और अल्लाह ताला की ज़ात ही ऐसी है जिस से हक़ीक़त में मदद तालब की जाए। आला हज़रत इमाम अहमद रजा खान रहमतुल्लाहि ताला अलैह फरमाते हैं:
'हक़ीक़ी मदद तालब करने से मुराद ये है कि जिस से मदद तालब की जाए, उसे बिलज़ात क़ादिर, मुस्तक़िल मालिक और ग़नी बे-नियाज़ जाना जाए कि वह अल्लाह ताला की आता के बिना ख़ुद अपनी ज़ात से उस काम (यानी मदद करने) की ताक़त रखता है। अल्लाह ताला के अलावा किसी और के बारे में ये ईमान रखना हर मुसलमान के नज़दीक़ 'शिर्क' है और कोई मुसलमान अल्लाह ताला के अलावा किसी और के बारे में ऐसा 'ईमान' नहीं रखता और अल्लाह ताला के मक़बूल बंदों के बारे में मुसलमान ये ईमान रखता है कि वह अल्लाह ताला की बारगाह तक पहुँचने के लिए वसीला और हाजतें पूरी होने का वसीला और ज़रिया हैं तो जिस तरह हक़ीक़ी वुज़ूद के किसी के पैदा किए बिना ख़ुद अपनी ज़ात से मौजूद होना अल्लाह ताला के साथ ख़ास है, उस के बावज़ूद किसी को मौजूद कहना इस वक़्त तक शिर्क नहीं है जब तक वही हक़ीक़ी वुज़ूद मुराद न लिया जाए,
यूंही हक़ीक़ी इल्म कि किसी की आता के बिना ख़ुद अपनी ज़ात से हो और हक़ीक़ी तालीम कि किसी चीज़ की मुहताजी के बिना अज़ ख़ुद किसी को सिखाना अल्लाह ताला के साथ ख़ास है, उस के बावज़ूद दूसरे को आलिम कहना या उस से इल्म तालब करना इस वक़्त तक शिर्क नहीं हो सकता जब तक वही असली मानी मुराद न हों, तो इसी तरह किसी से मदद तालब करने का मामला है कि उस का हक़ीक़ी मानी अल्लाह ताला के साथ ख़ास है और वसीला और वास्ता के मानी में अल्लाह ताला के अलावा के लिए साबित है और हक़ है बल्कि ये मानी तो ग़ैरुल्लाह ही के लिए ख़ास हैं क्योंकि अल्लाह ताला वसीला और वास्ता बनने से पाक है, उस से ऊपर कौन है कि ये उस की तरफ़ वसीला हो गा और उस के सिवा हक़ीक़ी हाज़त रवा कौन है कि ये बीच में वासिला बनेगा। बदमज़हबों की तरफ़ से होने वाला एक इत्तिराज़ ज़िक्र करके उस के जवाब में फरमाते हैं:
'ये नहीं हो सकता कि ख़ुदा से तवस्सुल कर के उसे किसी के यहाँ वासिला और ज़रीया बनाया जाए, उस वासिला बनने को हम औलिया कराम से मांगते हैं कि वह दरबार इलाही में हमारा वासिला, ज़रीया और क़ज़ाए हाज़त का वासिता हो जाए, उस बे वक़ूफ़ी के सवाल का जवाब अल्लाह ताला ने इस आयते करीमा में दिया है:
'{और जब वे अपने आप से ज़ुल्म किया करें तो तुम्हारे पास आएँ और अल्लाह से माफ़ी मांगें और अल्लाह के रसूल माफ़ी मांगता तो वह अल्लाह को तौबा करने वाला, दयालु मिले'।(निसा: ६४)
"ترجمۂ کنزالعرفان: और जब वे अपनी जानों पर ज़ुल्म यानी गुनाह करके तेरे पास हाजिर हों और अल्लाह से माफ़ी चाहें और माफ़ी मांगें तो उनके लिए रसूल बेशक अल्लाह को तौबा करने वाला, दयालु पाएँगे। क्या अल्लाह ताला अपने आप नहीं बख़्श सकता था फिर क्यों ये फरमाया कि ऐ नबी! तेरे पास हाजिर हों और तू अल्लाह से उनकी माफ़ी चाहे तो ये दौलत और नेमत पाएँगे। यही हमारा मतलब है जो कुरआन की आयत साफ़ फरमा रही है। (फतावा रजविया، २१ / ३०४-३०५, मलख़ूसन)
ज़ीर तफ़सीर आयत करीमा के बारे में अधिक तफ़्सील जानने के लिए फतावा रजविया की २१वीं जिल्द में मौजूद आला हज़रत इमाम अहमद रजा खान रहमतुल्लाहि ताला अलैह का रिसाला ‘’बरकातुल इम्दाद लिल اہل الاستمداد (मदद तालब करने वालों के लिए इमदाद की बरकातें)‘’ का मुताला कीजिए।
अल्लाह ताला की आता से बंदों का मदद करना अल्लाह ताला ही का मदद करना होता है:
याद रहे कि अल्लाह ताला अपने बंदों को दूसरों की मदद करने का इख्तियार देता है और उस इख्तियार की बुनियाद पर उन बंदों की मदद करना अल्लाह ताला ही का मदद करना होता है, जैसे ग़ज़वा बद्र में फ़रिश्तों ने आकर सहाबा किराम ऱदियअल्लाहु ताअला अन्हु की मदद की, लेकिन अल्लाह ताला ने इर्शाद फ़रमाया:
‘’व लकद नसरकुमुल्लाहु बद्ऱ व आन्तुम अज़िल्लतु‘‘(आले इम्रान: १२३)
तर्जुमा कन्ज़ुल ईमान: और बेशक अल्लाह ने बद्र में तुम्हारी मदद की जब तुम पूरी तरह बेसुर्ख़ थे।
यहाँ फ़रिश्तों की मदद को अल्लाह ताला की मदद कहा गया, इसकी वजह यही है कि फ़रिश्तों को मदद करने का इख्तियार अल्लाह ताला के देने से है तो हक़ीक़त में ये अल्लाह ताला की मदद हुई। यही मामला अम्बिया किराम आले हिस्सातु वस्सालात वस्सलाम और औलिया ए एज़ाम ऱदियअल्लाहु ताअला अन्हु का है कि वह अल्लाह ऱब वाज़ज़ला की आता से मदद करते हैं और हक़ीक़त में वह मदद अल्लाह ताला की होती है, जैसे हज़रत सुलैमान अलैहिस्सालाम ने अपने वज़ीर हज़रत आसिफ़ बिन बरख़िया ऱदियअल्लाहु ताअला अन्हु से ताख़्त लाने का इर्शाद फ़रमाया और उन्होंने पलक झपकने में ताख़्त हाजिर कर दिया। उस पर उन्होंने फ़रमाया: '’हाज़ा मिन फ़द्ले ऱब्बी‘‘तर्जुमा कन्ज़ुल ईमान: यह मेरे ऱब के फ़ज़्ल से है । "
(نمل :۴۰) और ताजदारे रिसालत सल्लल्लाहु ताआला अलैहि वाआलि वसल्लम की सीरत-मुबारक में मदद करने की तो इतनी मिसालें मौजूद हैं कि अगर सब इकट्ठे की जाएं तो एक मोटी किताब बन सकती है, इनमें से कुछ मिसालें ये हैं :
(१)…सही बुखारी में है कि नबी करीम सल्लल्लाहु ताआला अलैहि वाआलि वसल्लम ने थोड़े से खाने से पूरे लश्कर को सीर किया।(बुखारी، किताब उल-मगाज़ी، बाब ग़ज़वतुल खंदक।।। आदि, ३ / ५१-५२, अल-हदीस: ४१०१, अल-खिसास अल-कुबरा، बाब मुज़ज़ातुह सल्लल्लाहु अलैहि वाआले फ़ी तक़सीरिल ताम ग़ैरि मा तक़द्दम, २ / ८५)
(२)…आप सल्लल्लाहु ताआला अलैहि वाआलि वसल्लम ने दूध के एक प्याले से सत्तर सहाबा को सीराब कर दिया।(बुखारी، किताब उर-रिक़ाक़، बाब कैफ कान आईशुन नबी।।। आदि, ४ / २३४, अल-हदीस: ६४५२, उम्दतुल कारी, किताब उर-रिक़ाक़، बाब कैफ कान आईशुन नबी।।। आदि, १५ / ५३६)
(३)… अंगुलियों से पानी के चश्मे जारी करके चौदह सौ या इस से भी ज़ाएद आफ़राद को सीराब कर दिया।(बुखारी، किताब उल-मगाज़ी، बाब ग़ज़वतुल हुदैबिय्या، ३ / ६९, अल-हदीस: ४१५२-४१५३)
(४)… लुआबे दहन से बहुत से लोगों को शिफ़ा आता फ़रमाई।(अल-खिसास अल-कुबरा، बाब आयातुह सल्लल्लाहु अलैहि वाआले फी अबराज़ि लम्ऱि।।। आदि, २ / ११५-११८)
और ये सभी मददें क्योंकि अल्लाह ताआला की अता की हुई ताक़त से थीं लहज़ा सब अल्लाह ताआला की ही मददें हैं। इस बारे में और जानने के लिए फ़तवा ऱिज़विया की ३०वीं जिल्द में मौजूद आला हज़रत, इमामे आहलेसुन्नत, मौलाना शाह इमाम अहमद ऱज़ा ख़ान अलैहि रहमतुल्लाह के रिसाले ’’अल-आमन वआल-ऊला लिनाईती अल-मुस्तफा बिदाफ़िआल बलाँ‘‘ का मुताला कीजिए।"
Quran Surah Al-Fatiha 1:5
اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ
हमें सीधा रास्ता चला।
{اِهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِیْمَ: हमें सीधे रास्ते पर चला।} अल्लाह ताला की ज़ात और सिफ़ात की मारिफ़त के बाद उसकी इबादत और हक़ीक़ी मददगार होने का ज़िक्र किया गया और अब यहाँ से एक दुआ सिखाई जा रही है कि बंदा यूं अर्ज़ करे: अय अल्लाह! आज़्ज़वजल, तू ने अपनी तौफ़ीक़ से हमें सीधा रास्ता दिखा दिया, अब हमारी इस राह में हिदायत में इज़ाफ़ा फरमा और हमें इस पर स्थिर क़दम रख।
सिरात-ए-मुस्तकीम का माने:
सिरात-ए-मुस्तकीम से मुराद 'आक़ाइद का सीधा रास्ता' है, जिस पर तमाम अनबिया कराम अलैहिमुस्सलाम चले या इस से मुराद 'इस्लाम का सीधा रास्ता' है जिस पर सहाबा किराम ऱदिअल्लाहु तआला अन्हुम, बुज़ुर्गान-ए-दीन और अवलियां-ए-आज़ाम ऱहमतुल्लाहि ताआला अलैहीम चले, जैसा कि अगली आयत में मौजूद है और यह रास्ता अहल-सुन्नत का है कि आज तक अवलिया ए किराम ऱहमतुल्लाहि ताआला अन्हुम सिर्फ इसी मसलक-ए-अहल-सुन्नत में गुज़रे हैं और अल्लाह ताला ने उन्हें उनके रास्ते पर चलने और उनके साथ होने का फरमाया है। फरमान-ए-बारी ताला है: ''याईय्युहल्लजीना आमनू इत्तखुल्लाहा वा कुनू माअस्सादिकीन" (आत-तौबा: 119) तरजुमा-ए-कन्ज़-उल-आरिफ़ान: अए ईमानवालों! अल्लाह से डरो और सच्चों के साथ हो जाओ। और हज़रत अनस ऱदिअल्लाहु ताआला अन्हुम से रवायत है, सीद-उल-मुर्सलीन सल्लल्लाहु अलैहि व आलेहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया: 'बे शक़ मेरी उम्मत कभी गुमराही पर जमा नहीं होगी, और जब तुम (लोगों में) इख्तिलाफ़ देखो तो तुम पर लाज़िम है कि सवाद आ'ज़म (यानी मुस्लिमों के बड़े गुरूह) के साथ हो जाओ। (इब्न माजाह, किताब अल-फितन, बाब अस्स्वाद अल आज़म, 4/327, al-Hadith:3950) हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर ऱदिअल्लाहु ताआला अन्हुम से रवायत है, सल्लल्लाहु अलैहि व आलेहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया: 'बनी इस्राईल 72 फ़िरक़ों में तग़सीम हो गए थे और मेरी उम्मत 73 फ़िरक़ों में तग़सीम हो जाएगी, उन में से एक के इलावा सब जहन्नुम में जाएँगे। सहाबा किराम ऱदिअल्लाहु ताआला अन्हुम ने अर्ज़ की: 'या रसूल अल्लाह! सल्लल्लाहु अलैहि व आलेहि वसल्लम, नजात पाने वाला फ़िरक़ा कौनसा है? इर्शाद फरमाया: '(वह उस तरीक़े पर हो गा) जिस पर मैं और मेरे सहाबा हैं। (तिर्मिज़ी, किताब अल-ईमान, बाब मा ज़ाअ फी इफ्तिराक... अलख़, 4/291-292, al-Hadith: 2650) हिदायत हासिल करने के ज़राइल: याद रहे कि अल्लाह ताला ने हिदायत हासिल करने के बहुत से ज़राइल आता फरमाए हैं, उन में से चंद यह हैं: (1)… इंसान की ज़ाहिरी बातिनी सलाहियतें जिन्हें इस्तेमाल कर के वह हिदायत हासिल कर सकता है। (2)… आसमानों, ज़मीनों में अल्लाह ताला की क़ुदरत और वहदानियत पर दलालत करने वाली निशानियाँ जिन में ग़ौर और फिक्र कर के इंसान हिदायत पा सकता है। (3)… अल्लाह ताला की नाज़िल करदी हुई किताबें, उन में से तौरात, इंजील और ज़बूर क़ुरआन पाक नाज़िल होने से पहले लोगों के लिए हिदायत का बाइ'आ सभी थीं और अब कुरआन मजीद लोगों के लिए हिदायत हासिल करने का ज़रीआ है। (4)… अल्लाह ताला के भेजे हुए ख़ास बंदे अनबिया कराम और मुरसलीन-ए-आज़ाम ऱिज़ाम अलैहिमुस्सलाम, ये अपनी अपनी क़ौमों के लिए हिदायत हासिल करने का ज़रीआ थे और हमारे नबी हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व आलेहि वसल्लम क़़यामत तक आने वाले तमाम लोगों के लिए हिदायत का ज़रीआ है। आयत ''اِهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِیْمَ' से मालूम होने वाले अहक़ाम: इस आयत से तीन बातें मालूम हुईं: (1)… हर मुस्लिम को अल्लाह ताला से सीधे रास्ते पर साबित क़दमी की दुआ मांगनी चाहिए। (2)… उसके बाद यह दुआ सिखाई गई है कि वह इस सीधे रास्ते पर दुर्बल क़दम नहीं रखे और न ही उसे छोड़े। (३)… हर दिन को आज़ाद रहकर यही दुआ मंगनी चाहिए क्योंकि हर दिन नए जहन्नमी, अज़ाबी और मक़रूबी की कमी होती है और हमें इसकी क़दमी करते हुए सच्चे इस्लामी बन जाना चाहिए।"Quran Surah Al-Fatiha 1:6
صِرَاطَ الَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا الضَّالِّينَ
रास्ता उनका जिन पर तू ने ऐसा किया, ना उनका जिन पर तू ने ग़ुस्सा किया और ना उनका जिन पर भटके हुए।
"{उन लोगों का रास्ता जिन पर तू ने अनुग्रह किया।}" यह जुमला पहली आयत का तफ़सीर है कि 'सीधा रास्ता' का तावील उन लोगों का है जिन पर अल्लाह ने अनुग्रह किया है। और जिन लोगों पर अल्लाह ने अपना फ़ज़ल और अनुग्रह किया है, उनके बारे में इशारा किया जाता है: "और जो अल्लाह और उसके रसूल की ताबाती करें वह उन लोगों के साथ होंगे जिन पर अल्लाह ने अपना फ़ज़ल किया है, यानी अम्बिया, सिद्दीक़, शहीद और सालिहीन, और ये कितने अच्छे साथी हैं।" आयत "सीरातुल जनान" से ज्ञात होने वाले मुद्दे: इस आयत से दो बातें स्पष्ट होती हैं: (1) ... जो मामले पुराने दीन के बड़े लोगों की अमल की तकमील हैं, वह सीधा रास्ता में हैं। (2) ... इमाम फख्रुद्दीन राजी रहमतुल्लाहि ताला अलैहे फरमाते हैं: कुछ मुफ़स्सिरीन ने कहा है कि "इहदिना सिरातुल मुस्तकीम" के बाद "सीरातुल जनान" का जिक्र करना इस बात की दलील है कि मुरीद हदायत और मुकाशफ़ा के मकाम तक इस तरह पहुँच सकता है जब वह किसी ऐसे (कामिल) पीर की पैरवी करे जो सीधे रास्ते की ओर इसका मार्गदर्शन करे, ग़लतियों और ग़ुमराहियों की जगहों से उसे बचाए क्योंकि अक्सर लोगों पर नुक़सान व्याप्त है और उनकी समझ सच को समझने, सही और ग़लत में अंतर करने में कमजोर है, तो ऐसे कामिल व्यक्ति का होना ज़रूरी है जिसका नुक़सान वाला पीर पैरवी करे तकी उसकी बुद्धि के नूर से उस नुक़सानदार व्यक्ति की बुद्धि भी" मजबूत हो जाए तो ऐसे हालात में वह सआदतों के दरजात और कमालात की बुलंदियों तक पहुंच सकता है।" (तफसीर कबीर, अल्फातिहा, अलबाब थालिथ, 1/164) "{ग़ैरिल मग़दूबि आलैहिम वलाड्दाल्लीन: न कि उनका रास्ता जिन पर ग़ज़ब हुआ और न भटके हुए।}" जिन पर अल्लाह तआला का ग़ज़ब हुआ, उन से मुराद यहूदी और भटके हुए से मुराद ईसाई हैं, जैसा कि सुनन तिरमिज़ी, जिल्द 4, सफ़हा 444, हदीस नंबर 2964 में है और इमाम फख्रुद्दीन राजी रहमतुल्लाहि ताला अलैहे ने यह भी लिखा है कि जिन पर ग़ज़ब हुआ, उन से मुराद बुरा अमल हैं और भटके हुए से मुराद बुरी आकीदा लोग हैं। (तफसीर कबीर, अलफातिहा, तहत आयत: 7, 1/222-223) हर मुस्लिम को चाहिए कि वह आकीदे, अमल, सीरत, सूरत हर इतबार से यहूदियों, ईसाईयों और सभी काफ़िरों से अलग रहें, न उनके तौर तरीके अपनाएं और न ही उनके रसम ओ रिवाज और फ़ैशन इख्तियार करें और उनकी दोस्तियों और सहबतों से दूर रहते हुए अपने आप को क़ुरआन ओ सुन्नत के साँचे में ढालने में ही अपने लिए दोनों जहां की सआदत सोचें। ([1]) आयत "वलाद्दाल्लीन" से मतलबी शरई मसाला: कुछ लोग "वलाद्दाल्लीन" को "वलाअद्धाल्लीन" पढ़ते हैं, उनका ऐसा करना हराम है। अल्लाहाज़्वजल, तू क़बूल फ़र्मा। अल्लाहाज़्वजल, तू ऐसा ही फ़र्मा। आमीन से मतलबी शरई मसाला: (१) ... यह क़ुरआन मजीद का कलमा नहीं है। (२) ... नमाज़ के अंदर और नमाज़ से बाहर जब भी "सूरह फातिहा" ख़त्म की जाए, तो उसके बाद आमीन कहना सुन्नत है। (३) ... अहनाफ़ के नज़दीक नमाज़ में आमीन बुलंद आवाज़ से नहीं बल्कि आहिस्ता कही जाएगी। [1] ... अपनी और सारी दुनिया के लोगों की इस्लाह की कोशिश के लिए तबलीग़े क़ुरआन ओ सुन्नत की आलमगीर ग़ैर सियासी तहरीक, दावत इस्लामी, से वाबिस्ता हो जाना बेहद मुफ़ीद है।"